जानु शूल (घुटने का दर्द)

जानु शूल (घुटने का दर्द)

जानु शूल (घुटने का दर्द) : आयुर्वेद अनुसार कारण तथा निदान करने कि सही पद्यती !

आम भाषा में घुटने के दर्द को संधिवात (osteoarthritis) के चश्मे से देखा जाता है। बात सही भी है लेकिन कुछ रोगियों में चिकित्सा का परिणाम मिलता है तथा कुछ में नहीं। क्या आपने कभी इस बात का विचार किया है? अगर नहीं, तो यह लेख आपको जानू शूल के रोगियों का उचित निदान तथा उचित चिकित्सा करने में मदद कर सकता है।

हर अवयव में हर धातु विद्यमान रहती है, इस सिद्धांत के अनुसार जानु शूल के रोगियों को उनके शूल के स्थान अनुसार बाँटा जा सकता है। आइए जाने कैसे –

१) जानु संधि मध्य (centre of Patella) अथवा जानू संधि के नीचे (Tibial head) में उत्पन्न शूल – यहाँ अस्थि धातु/ संधि का विचार आवश्यक है। यह शूल अस्थि धातु क्षय (जो की वात दोष के प्रकोप से होता है) के कारण होता है। संधि गत श्लेष्क कफ जब कम हो जाता है तब वहाँ वात दोष की अधिकता होने के कारण संधि मध्य में शूल होता है। यह शूल के साथ-साथ संधि शब्द (घुटने से आवाज़) भी सुनने को मिल सकती है।

चिकित्सा- इस अवस्था में एकांतिक वात चिकित्सा लाभकर होती है जिसमें अभ्यंतर धनवांतर आवर्ती, महा स्नेह, योगराज गुग्गलू, महा वात विध्वंस रस, तापयदी लोहा, लाक्षादी गुग्गलू, इ अनाएक कल्प तथा बाह्य चिकित्सा में महनारायण तैल/ पंचगुण तैल स्नेहन-स्वेदन लाभकर होता है।

२) जानु संधि के ऊपर मांसल भाग में उत्पन्न शूल – संधि के ऊपर का भाग जहाँ जंघा जानू संधि से मिलती है वहाँ उत्पन्न शूल में दर्द के साथ खिंचाव इ भी देखने को मिलता है। शूल का प्रकार मुख्यतः डंडे से मारने वाली पीड़ा के रूप में रहता है। कभी कभी रोगी पत्थर रखने जैसी जड़ता का बाई अनुभव करता है। यहाँ मांस धातु का विचार करना ज़रूरी होता है। इसके साथ साथ इस शूल का दूसरा प्रमुख कारण उदर विकार होता है। उदर मांसपशियो का जंघा प्रदेश से सामवायी सम्बन्ध रहता है। यही कारण है की भोजन के बाद १०० कदम चलना पाचन के लिए लाभकरक बताया है।

चिकित्सा – यहाँ पाचन को सुधारने वाली चिकित्सा के साथ साथ, मांस धातु को बल देने वाली चिकित्सा लाभकर होती है। उदा – अश्वगंधारिष्ट, त्रयोदशंग गुग्गलू, मधु मालिनी वसंत, मांस पाचक क्वाथ, बालारिष्ट, महामाष तैल, बला अश्वगंधा आदि तैल, इ का प्रयोग चिकित्सा में फल देता है।

३) जानु संधि के बाहरी हिस्से (Lateral aspect of knee joint) में उत्पन्न शूल – यह शूल गृध्रसी रोग से सम्बंधित रहता है। यह भाग Sciatic nerve के मार्ग में आता है अतः यहाँ उत्पन्न शूल में गृध्रसी (Sciatica) का विचार आवश्यक है। यह सम्प्राप्ति कटी भाग के मज्जा तंतु (Sciatic nerve) पर पड़े दबाव के कारण उत्पन्न होती है परंतु यहाँ जानू संधि के बाहरी भाग में सगूल देखने को मिलता है। इसके अन्य लक्षणो में गृध्रसी रोग के लक्षण भी देखने को मिलते है या मिल सकते है।

चिकित्सा- यह गृध्रसी रोग की चिकित्सा लाभकरक होती है। कल्पों में सहचरदी तैल आवर्ती, त्रयोदशंग गुग्गलू, रसोनादि वटी, रसोन क्षीर पाक, रस राज रस, रसनादि गुग्गलू, दशमूलरिस्ट, सहचरदी तैल अभ्यंग व स्वेदन लाभकारी होते है। यहाँ जानू संधि तथा कटी प्रदेश में किया गया विद्ध कर्म (रक्त मोक्षण) त्वरित शूल नाशक लाभ दिखाता है।

४) जानु संधि पृष्ठ शूल (Back & medial sided pain of Knee joint) – यह प्रदेश सिरा व कंडराओ से घिरा रहता है तथा सिरा व कंडरा रक्त की उपधातु होती है इसलिए यहाँ रक्त धातु का विचार आवश्यक होता है। यहाँ शूल के साथ साथ दाह होना, सिराओ का नीला पड़ जाना, स्पर्श में उष्ण होना, सिरा ग्रंथि (Varicosity) इ लक्षण देखेने को मिलते है।

चिकित्सा – क्योंकि संधि स्थान होने के कारण यहाँ निरंतर गति होती रहती है तथा वात प्रकोप होता है, इसलिए चिकित्सीय दृष्टि से यहाँ वात रक्त की चिकित्सा लाभकर होती है। कल्पों में कैशोर गुग्गलू, गोक्षरदी गुग्गलू, क्षीर बाला आवर्ती, कोकिलाक्षादी कषाय, तापयदी लोह, संशमनी वटी, क्षीरबल तैल अभ्यंग, पिंड तैल अभ्यंग इ लाभकारी होता है।

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