बालकों में शय्या मूत्र (Bed wetting) : आयुर्वेद दृष्टिकोण
शय्या मूत्र आज के परिपेक्ष में हर 10 में से 7 बच्चों में देखने को मिलता है। आधुनिक चिकित्सा में इसका कोई ठोस इलाज नहीं है। वहाँ टॉयलेट ट्रेनिंग के नाम पर माता पिता को भटका कर उनका समय तथा पैसा दोनो बर्बाद किया जाता है। इसके बाद जब यही रोगी आयुर्वेद चिकित्सक के पास आता है तो इस आशा से की आयुर्वेद में इसका जड़ से इलाज हो पाएगा। परंतु अगर आयुर्वेद चिकित्सक को इस रोग की सम्प्राप्ति और निदान नहीं पता है तो सही मानिए यह रोग चिकित्सक के नाकों तले चने चबवाने का काम करता है। आयुर्वद में क्योंकि कुछ चिकित्सक फ़ॉर्म्युला बेस्ड चिकित्सा करते है, इसलिए वह यहाँ भी कुछ इसी तरह की औषधों को प्रयोग में लाते है। उदाहरण- काले तिल, टैब्लेट NEO, इ। आप भी अगर इन सब दवाओं का प्रयोग कर चुके है और सफ़लता से दूर है तो यह लेख आपको अवश्य ही लाभ पहुँचाएगा।
शय्या मूत्र का कारण
* शय्या मूत्र का मुख्य कारण कृमि होता है। बाल वय कफ प्रधान होने के कारण कृमि का ख़तरा हमेशा बना रहता है। उप्पर से आज कल के बच्चे, चिप्स, कुरकुरे, चोक्लेट, किंडर जोय, बेकरी के पदार्थ मैगी ई का अत्यधिक सेवन करते है जिससे कृमि को बल मिलता है और कृमि जन्य रोगों में वृद्धि होती है, जिसमें से शय्या मूत्र प्रमुख है। कृमि आंत्र की गति पर से बालक का ऐच्छिक नियंत्रण (VOLUNTARY CONTROL) ख़त्म कर देता है इसलिए बालक चाह कर भी इसे रोक नहीं पाता।
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अब आपके पास आए बालक के माता पिता यह दलील देते है या फिर ऐसा विचार आता है की DEWORMING की दवा तो बच्चा हर छह महीने में लेता है फिर भी कृमि कैसे हो जाते है। आइए समजते है। बाल वय कफ का वय रहता है। इसलिए जो बालक इस तरह का दूषित आहार विहार करता है उसके अन्न वह स्रोतस में आम की उत्पत्ति होती है। इसे कीचड़ की तरह समझा जा सकता है। इसी कीचड़ में कृमि पैदा होते है। अगर कृमि से निजात पाना है तो इस आम रूपी कीचड़ को सुखाना ही एक मात्रा उपाय होता है ना की कीचड़ में DEWORMING की दवा डालना। कृमि के अंडे हर समय इस अन्नवह स्रोतस के आम के रूप में रहते है इसलिए DEWORMING करने का कुछ लाभ नहीं होता है।
कृमि की पहचान कैसे करें ?
बालकों में कृमि के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार होते है-
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चहरे पर हल्के सफ़ेद दाग होना / Complexion का UNEVEN TONE होना
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बालक का हमेशा नाक व कान खुजलाना
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सोते समय मुँह से लार आना, दांत किट किटाना, या बोलना
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चेहरे और कान के पर्दे का स्पर्श करने पर अलग अलग तापमान का महसूस होना (कान ठंडे होना)
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बालक का चिड़चिड़ा होना
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भूख ना लगना या वजन ना बढ़ना
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पेट दर्द होना या बार बार बीमार पड़ना
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मिट्टी – बाल- धूल इत्यादि खाने की आदत होना
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रात में मधुर रस सेवन की प्रबल इच्छा होना/ चीनी खाना
शय्या मूत्र की चिकित्सा
शय्या मूत्र का स्पष्ट व प्रमुख निदान कृमि होने के कारण सबसे पहले कृमि की चिकित्सा करनी चाहिए। आयुर्वेद में कृमि चिकित्सा के तीन प्रमुख सिद्धांत आए है-
१) अपकर्षण – अर्थात् कृमि को खींच कर बाहर निकालना। चिकित्सीय दृष्टिकोण से इसका अर्थ है कि मृदु विरेचन द्रव्यों का प्रयोग कर कोष्ठ से कृमि को मल द्वारा बाहर खींच लेना। इसमें आप हर 20 दिन में एक बार बालक को रात्रि के समय वय अनुसार 15-20 ml एरंड तैल का पान गरम पानी के साथ करवा सकते है। इससे कृमि पतन होने के साथ उनकी दोबारा होने की आशंका पूरी तरह समाप्त हो जाती है।
२) प्रकृति विघात – अर्थात् कृमि को पसंद आने वाले रस (मधुर – अम्ल -लवण) के विपरीत रस जैसे कटु – तिक्त – कषाय रस का आहार में सेवन।
-इसमें आप बालक को खाने में करेले, परवल, इ की सब्ज़ी दे सकते है।
-रात को सोते समय पेट व कमर पर कटु रस प्रधान सरसों के तैल की मालिश कर सकते है।
-तिक्त – कटु रस प्रधान आयुर्वेद औषधि भी इसी सिद्धांत के अंदर आती है।
३) निदान परिवारजन – अर्थात् कृमि को पसंद आने वाले आहार विहार का त्याग।
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बालक को बाहर के खाने पीने की आदत छुड़वा दे।
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मीठे में चोकोलेट इ की जगह घर का मीठा दे।
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बेकरी के प्रॉडक्ट्स का उपयोग ना करे।
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रात को सोने से दो घंटा पहले बालक को किसी भी तरह की LIQUID ना दे।
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बालक को ओवर फ़ीडिंग ना करवाए तथा जब उसे खुद से भूख लगे तभी खाना दे।
शय्या मूत्र में लाभकारी कुछ औषध कल्प
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कृमि मुदगर रस, गोक्षरदी गुगलू, चंद्रा प्रभा वटी, विडंग अरिष्ट, अरगवध कपिला वटी, एरंड तैल, ब्राह्मी वटी, लघु सूतशेखर रस इ कल्पों का प्रयोग निदान, वय, लक्षण, इ देख कर किया जा सकता है।
किसी भी रोग की चिकित्सा के लिए औषध से ज़्यादा सही निदान महत्वपूर्ण होता है इसलिए अपने शास्त्र वाचन, तथा Observation skills को सही तरीक़े से develop करे। इन सबके होने पर शय्या मूत्र जसे रोगों में शुरूवाती 15 दिनो में ही आश्चर्य जनक लाभ देखेने को मिल सकते है।धन्यवाद।
वैद्य राहुल गुप्ता
(एम. डी. आयुर्वेद)
श्री विश्व प्रांगण आयुर्वेद चिकिसालय, हल्द्वानी
Email- doc14122008@gmail.com
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